Friday, December 22, 2017

बच्चों को सुधारने से पहले स्वयं में झाकिए......



माता पिता का हमेषा अपने बच्चे के प्रति रवैया रहता है कि तुम सुधरते क्यों नहीं ? मुझे आज अपने दोस्तों के साथ खेलने जाना है मम्मा में जा सकता हूं न। लेकिन किरन तो अपनी दोस्त के साथ फोन पर व्यस्त है आकाष बोले जा रहा है लेकिन वो है कि उसको अनसुना कर रही है।’’ हम बच्चों को हमेषा दोष देते रहते है कि ये मेरी कोई बात सुनता नहीं है लेकिन कहीं न कहीं हम ही इन चीजों के जिम्मेदार होते है। यहां किरन अपने बेटे की बातों को अनसुना कर रही थी बच्चा तो आपसे ही सिखता है जब वह नहीं सुनता तो आप उसको डांटते फटकारते है। षुरूआत माता पिता के व्यवहार से ही होती है जिसे बच्चा देखता है और वैसा ही व्यवहार करने लगता है।

बच्चे की सुने
हमेषा बच्चों पर दोष लगाने से बेहतर स्वयं को सुधारे बच्चे की सुने। बच्चे के लिए माता पिता ही सबकुछ होते है और वहीं उसकी बात को अनसुना कर दे तो बच्चा परेषान हो जाता है साथ ही वह घर के बाहर और लोगों से जुड़ने लगता है। बच्चों से बात करे और उनकी सुने। स्कूल में कैसा दिन रहा साथ ही उनकी गतिविधियों पर ध्यान दें। जब भी बच्चा आपको कुछ बताना चाहता है तो उसको नजरअंदाज करने की बजाए उस पर गौर करे।

मदद करना
आपका लोगों से कैसा व्यवहार है इसका बच्चों पर बेहद असर डालता हैं क्योंकि यदि आपका व्यवहार हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहता है तो बच्चें सबकुछ देखते है और अपने व्यवहार में लाते है। जैसे आप अपने पड़ोसी,मित्र,रिष्तेदारों और अपने घर में अपने बड़ों बुजुर्गो,माता पिता,भाई बहन की किसी भी रूप में मदद करते है  तो बच्चा भी स्कूल में अपने सहपाठियों,घर में माता पिता,दादा दादी और भाई बहन की आदि की मदद करते है।

लोगों की भावनाओं को समझना
परिवार बच्चें की पहली कक्षा होती है उसी से बच्चे की नींव बनती है। एक दूसरे के बीच अच्छे सम्बन्घ और अच्छी भावनाएं एक सम्पूर्ण  परिवार का निर्माण करती है। लेकिन यदि परिवार के सदस्य मां बाप किसी की इज्जत और मान सम्मान नहीं करते तो उसका सीधा असर बच्चों में पड़ता है। हम यदि अपना मान सम्मान बच्चों को करने के लिए जोर डालते है तो उससे पहले जरूरी है कि स्वयं सम्मान करना सीखे।

दूसरे बच्चों के साथ तुलना
अक्सर माता पिता अपने बच्चों की योगयताओ को नजरअंदाज कर देते है। साथ ही उनके ही सहपाठियों या मित्रों की योगयता अपने बच्चों से करने लगते है। हर व्यक्ति सभी चीजों में सम्पूर्ण नहीं हो सकता। सभी में अपनी अपनी योगयता होती है। परंतु मां बाप बिना सोचे समझे दूसरे बच्चों की तारिफ करते रहते है जिससे बच्चे उबने लगते हे। और अपने ही मां बाप से दूर होने लगते है। आप ही सोचे यदि आपके सामने किसी और की तारिफ कुछ ज्यादा ही होने लगे तो आपके अपने गुण तो छुप ही जाएंगे और आपको बेहद परेषानी महसूस होने लगेगी।

अपनी गलतियां बच्चों के सिर
अक्सर माता-पिता अपनी गलतियां बच्चों के सिर मढ़ देते हैं। जैसे कुछ माता-पिता कहते हैं कि उन्हें उनके बेटे की हरकतों ने ही गुस्सा दिलाया। क्या छोटे बच्चे आपका गुस्से में चिल्लाना बर्दाश्त कर सकते हैं? शायद नहीं। इसलिए बच्चों पर चिल्लाने से बचें। इस तरह आप उन्हें अनजाने ही गलत चीजें सिखाते हैं। आप स्वयं को बदलने की कोषिष करे।


उसकी आजादी में दखल
बच्चों के दोस्तों के साथ खेलना कूदना आपको ज्यादा पसंद नहीं आता। आपको लगता है कि आप बच्चे को सारे दिन स्कूल से घर और घर से स्कूल तक ही सीमित रखना चाहते है। लेकिन पूरे दिन में बच्चा चाहता है कि वह भी अपने दोस्तों के साथ खेले कूदे। क्या आप पूरा दिन कार्य करते करते थकते नहीं है,क्या आप नहीं चाहते कि थोड़ा समय दोस्तों से गपषप या टी वी या बाकि किसी चीज में समय बिताएं। आप भी अपनी आजादी चाहते है तो ऐसे ही बच्चे भी आजादी चाहते है साथ ही दोस्तों के साथ समय बिताना चाहते है। इससे वे अपने दोस्तों के साथ खेल में बहुत सी चीजें सीखते हैं। दोस्तों के साथ खेल से वे संघर्ष, चीजें साझा करना, गलतियों को सुधारना और अपना प्रभाव बनाना जैसी कई बातें सीखते हैं।

बच्चें तो अच्छा ही सीखेंगे
अक्सर माता-पिता खुद अलग तरह का व्यवहार करते हैं और बच्चों से अलग व्यवहार की उम्मीद करते हैं। उन्हें लगता है कि वे बच्चों को अच्छा बर्ताव सिखा सकते हैं लेकिन बच्चे जितना सुनकर सीखते हैं उससे ज्यादा वे माता-पिता को देखकर सीखते हैं। इसलिए माता-पिता को यह नहीं सोचना चाहिए कि वे चाहे जो करें लेकिन बच्चों को सिर्फ अच्छा सिखाएंगे। पहले अपने व्यवहार में बदलाव लाएं फिर बच्चों से उम्मीदें करे।

असफलता से परेषान होना
मां बाप को बच्चों से हमेषा उम्मीद रहती है कि वह क्लास में जो भी हो 10 में से 10 ही लाएगा। यदि 10 में से 9 भी आ जाएंगे तो उनसे बर्दाषत नहीं होता। माता-पिता बच्चों की सफलता पर बहुत ज्यादा गर्व करने लगते हैं या उसे ही अपनी सफलता मानने लगते हैं तो बच्चों की जरा सी भी गलती उन्हें परेशान या बेचैन कर देती है। उस स्थिति में वे खुद को असफल महूसस करते हैं इसलिए बच्चों की सफलता और असफलता को ठीक से संभालना जरूरी है।

शालीन भाषा का प्रयोग करें
याद रखें कि हमेषा ष्षालीन भाषा का ही प्रयोग करे क्योकि इससे बच्चों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। जैसा आचरण हम करते है बच्चे भी वैसा आचरण करते है। आज हम यदि बच्चें तुम या आप करके बोलेंगे तो वे भी वैसे ही बोलेंगे। भाषा का हम बार-बार प्रयोग करते हैं, वैसी की वैसी ही भाषा एक विज्ञापन ( मनोविज्ञान) के प्रचार अभियान की तरह बच्चों के मन-मस्तिष्क में घर करती जाती है तथा बच्चा धीरे-धीरे उसे ही सच मानने लग जाता है एवं उसकी वास्तविक प्रतिभा कहीं खो-सी जाती है अत उसे कुंठित न करें।

बच्चों को सही और गलत का अंतर
सबसे पहले हम बच्चें की गलत बातों को नजरअंदाज करते है और फिर उसी से उम्मीद करते है कि वह सुधर जाएं। लेकिन ऐसा करके वे बच्चे को कभी सही और गलत के बीच का अंतर महसूस नहीं होने देते। बच्चे के गलत बर्ताव पर उसे बताना कि उसने क्या गलत किया है बहुत ही जरूरी है। गलतियां छुपाने से वह कभी नहीं सीखेगा। उसकी गलती को समझे और फिर उसको समझाएं।

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