आधुनिक समय की भागती दौड़ती लाइफ ने जीने के सारे तौर तरीके,व्यवहार,आदतें,रंग ढंग बदल दिए है।घर का रखरखाव,पहनने ओढने का ढंग,काम का तरीका सब में तबदीली आई है,इसका काफी असर घर के प्रमुख कोने रसोई पर भी पड़ा है।
अब गृहिणियों का घंटों रसोई में रहना न संभव है न ही पसंद किया जाता है।जीवन की व्यवस्तताओं व तेज रफतार,आधाुनिक और पाष्चात्य समाज की तर्ज पर अन्य बदलावों के साथ गृहिणी ने रसोई के षाॅर्टकट्स ढंूढ लिए है।सुबह षाम 3-4घंटे रसोई में लगाने वाली गृहिणी अब केवल घंटे भर मे ंरसोई का काम निपटा लेती है।
सहूलियत की दिषा में पहला कदम गृहिणी ने बर्तनों,उपकरणों,मषीनों,साधनों का नवीकरण कर उठाया।पीतल,कांसे,तांबे के बर्तनों की जगह गर्म होने वाले सस्ते व अच्छे स्टील या चीनी के बर्तन प्रयोग करने ष्षुरू किए,पतीले में सब्जी बनाने की जगह प्रेषर कुकर,चावल पकाने का बिजली का राइस कुकर,दही जमाने के लिए कर्ड ओवन आदि का इस्तेमाल होने लगा। अंगीठी,चूल्हा जलाने का झंझट गैस ने खत्म कर दिया।अनाज की पिसाई,कटाई,कुटाई,सिकाई या फलों का ज्यूस आदि निकालने के काम,जो हाथों से घंटो मेहनत कर होता था,अब मात्र बिजली का बटन दबाकर हो जाता है।
मिक्सी,जूसर ,टोस्टर आदि ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवारों की रसोई की षोभा बन गए है।फ्रिज के सुख ने रोज के झंझट से निजात दिलाई।सप्ताह भर की सब्जी लाकर काट पोंछ कर पाॅलीथिन के लिफाफों मे ंभरकर रख दी जाती है,बस कई दिनों का आराम।कई गृहिणियां आवष्यकता से अधिक सब्जी,दाल,पुडिंग वगैरह बनाकर रख देती हैं।अगर अचानक कुछ लोगों को खाना खिलाना पड़ जाए तो क्या देर लगती है खाना बनाने में।
कुछ गृहिणियां प्याज,टमाटर,अदरक को तेल मे ंभून कर बिना पानी डाले मसालो ंसहित,सप्ताह भर का सब्जी का मसाला बनाकर फ्रिज में रख देती हैं और बनाते समय थोड़ा थोड़ा निकाल कर डालती रहती है।नींबू,संतरे व आधुनिक प्रचलित पेय पदार्थ फ्रिज मे रखे रहते हैं।
ब्रेड,जैम,मक्खन का स्टाॅक होता है अतःमेहमानबाजी के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती।खाना सब्जी गर्म रहे इसके लिए हाॅट केस में बंद करके रख दिया जाता है तो परोसते वक्त गरम करने का झंझट नहीं होता?इन सबसे रसोइ्र का काम तुरंत हो जाता है।ठंडे पेय के डिब्बे,बोतल पाउडर,रस निकालने या ष्षर्बत बनाने की मेहनत से बचाते है।डिब्बा बंद अचार,मुरब्बे,सब्जियां,साग,खाना बनाने के ष्षाॅर्टकट्स साबित हुए है।
इन सुविधाओं को अपनाकर ही आज की महिलाएं नौकरी के साथ सामाजिक संबंध भी बना पाने में सक्षम है।इससे वे परिवार को जल्दी से जल्दी विविधता युक्त भोजन करा पाती है। डिब्बा बंद भोज्य पदार्थो से एक मौसम की चीजें दूसरे मौसम में भी प्राप्त हो जाती है। हवा बंद डिब्बों में भोजन की पौष्टिकता,स्वाद,पदार्थो की सुरक्षा आदि पर ध्यान रखा जाता है। अतःअमा राय में वे स्वास्थ्य के लिए भी हितकर रहते है।परंतु इस संबंध में विषेषज्ञों की कुछ अलग ही राय है।
कुछ विषेषज्ञों का मानना है कि जल्दी काम से मुक्त होने के चक्कर मे ंहमने भोजन पकाने मे काफी हेर फेर तो किया है किंतु यह नहीं जाना कि इनका सेहत पर कितना नुकसानदेह असर पड़ता है। विदेषों में यदि रोज भोजन नहीं बनाया जाता तो इसका विशेष कारण उनके भोजन की भिन्न प्रकृति है,जो मसालों,घी,तेलयुक्त नहीं होता।हमारे यहां फ्रिज की तरह वहां प्रत्येक घर में डीप फ्रीज होता है।जो 25 से 35 डिग्री तापक्रम पर रहता है यानी बर्फ जमने के तापमान से भी कहीं कम,इसलिए उनकी खाट्य सामग्री 8-10दिन तक सुरक्षित रह पाती है। किंतु हमारे फ्रिज,जिसमे ंबर्फ जमने का तापमान तक 8डिग्री रहता है,में भोज्य सामग्री 48घंटों से ज्यादा सुरक्षित रह पाना नामुमकिन है।
टमाटर से बनी चीजों या दूध की तैयार पुडिंग इत्यादि तो इससे भी कम समय में खराब होने की संभावना आदि के लिहाज से दोषरहित नहीं।कुछ सब्जियां इतने समय रखने से अपनेतत्व खो देती है।पतेदार सब्जियां बहुत जल्दी गल जाती हैं या सड़ जाती हैं अतःफ्रिज में रखकर उनकी पौष्टिकता नष्ट होगी ही।हां उबले चने,राजमा,दाल,40-44घंटे तक ठीक रहते हैं किंतु आम गृहिणियों का विचार है कि दो दिन बाद धारणा है। बेषक उसके स्वाद मे ंखराबी न आए और देखने में ठीक प्रतीत हो।किंतु उसे खाकर बीमार होने की 75 प्रतिषत संभावना बढ़ जाती है।
कुछ गृहिणियां मलाई को 10-15 दिन इकटठा करती रहती है ंइससे उस बर्तन मे ंचारों और हरा पानी या लेस आ जाती है। यह विषैला पदार्थ है।हालांकि पककर घी निकालने से घी तो ष्षुद्ध रहता है किंतु इतने दिनों तक उस मलाई ने फ्रिज मे ंरखी अन्य सामग्री में भी बैक्टीरिया फैलाएं है।फ्रीज में रखे हर भोज्य सख्त ढक्कन बंद डिब्बे में ही रखा जाएं।
कच्ची ताजी सब्जियों को साफ करके व पोंछकर पाॅलिथीन में सिर्फ तीन दिन सही हालत मे ंरखा जा सकता है और पकी हुई सब्जी बंद डिब्बों में सिर्फ 22-24 घंटों तक सुरक्षित रह सकती है।हर सप्ताह फ्रिज की सफाइ्र भी बहुत जरूरी है।
डिब्बा बंद संषोधित पदार्थ भी पौष्टिकता की दृष्टि से बंदाग नहीं।विदेषों में सबसे अधिक मौत हृदय रोग से होना पाया गया है और ष्षोध के अनुसार हृदय रोग का कारण खानपान का गलत ढंग व बेढंगी दिनचर्या है ।ऐसा भोजन कार्बोर्हाड्ेट की मात्रा बढ़ता है। वहां भी अब ताजे फलों व सब्जियों के प्रति रूझान बढ़ रहा है।रसोइ्र के इन शाॅर्टकट्स के द्वारा स्वास्थ्य केा दांव पर लगाना ठीक नहीं।अगर कुछ तब्दीलियां की भी जाएं तो काफी सतर्कता के साथ एवं सोच समझकर।
;आई एम ए के प्रैसिडेंट डा0 के के अग्रवाल से बातचीत पर आधारित द्ध
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