अगर परिवार में प्यार है, एकता है तो कभी भी कोई युवक युवती गलत कदम नहीं उठाएगा। लेकिन जब ये प्यार युवा पीढ़ी को नहीं मिल पाता,हमेषा पढ़ाई के पिछे डांट फटकार मिलती रहती है तो युवाओं में क्रोध,निराषा,हताषा ये सभी चीजे घर करने लगती है।सर्टिफिकेट डिग्री डिप्लोमा दिलाने वाली परिक्षाएं अच्छे भविष्य की दिषा में कदम मानी जाएं वहीं ठीक है।इन्हे जीवन मरण का प्रष्न बना लेना एक खतरनाक नासमझी है। परिक्षाएं आती जाती रहेगी लेकिन जीवन सिर्फ एक बार के लिए मिला है अतःकिसी भी परीक्षा से ज्यादा कीमती है जीवन।
मनोचिकित्सक क्या कहते हैं-
मनोचिकित्सकों के मुताबिक युवाओं में डिपर्षेन बढ़ता जा रहा है जिसके कारण वो अपनी जिंदगी खत्म करने के लिए उतारू हो जाते है।कोई भी व्यक्ति इस फैसले तक कोई एक दिन मेें नहीं पहुंचता।मन में लंबे अर्से से कष्मकष चल रही होती है।परीक्षा से पहले ,परीक्षा मेें अच्छा न कर पाने का डर और परीक्षा के बाद अच्छे नंबर न मिल पाने के डर के साथ साथ माता पिता की फंटकार या फिर उनकी उम्मीदों पर खरा न उतर पाने का अपराधबोध आदि बहुत से कारण हैं जिनके चलते बच्चे डिप्रेषन में रहते है।कुछ मामलों में जब लंबे समय से चल रहे डिप्रेषन से जूझने की उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है तो वे आत्महत्या जैसा फैसला ले बैठते है।
मनोचिकित्सकों का यह भी मानना है कि अधिकतर बच्चे परीक्षा के डर से ही तनाव में आकर मानसिक असंतुलन के षिकार हो जाते है।
एकल परिवार में एकाकीपन
संयुक्त परिवारों के जमाने में बच्चों से हंसने बोलने उनकी बातें उनके दुख एवं भय को जानने समझने व दूर करने के लिए सदस्य मौजूद हुआ करते थे।आज न्यूक्लियर परिवारों में युवको को केवल माता पिता उपलब्ध होते हैं साथ ही वह चाहकर भी समय नहीं दे पाते। जिसके कारण अपनी बात षेयर नहीं करने से युवा पीढ़ी अंदर ही अंदर घूटती रहती है।
रेत के महल
आज के टीनएजर्स मेें इतना अधिक जोष होता है कि वे समय से पहले सब कुछ हासिल करना चाहते है।माता पिता और बड़ों की बातें उन्हें दकियानूसी लगती हैं। अनुभव की कमी उन्हें असफलता की ओर धकेल देती है।इस उम्र में हर सपना रेत के महल की तरह हेाता है। हवा का हल्का झोंका भी इसे बिखेर देता है।जोष भरे दिल में सपनों का टूटना दिल के टूटने के समान होता है। टीनएजर्स ये सदमा बर्दाषत नहीं कर पाते और टूट जाते है।
प्रतिष्ठा का सवाल
परीक्षा में पास होने या अच्छे नंबर न ला पाने का डर टीनएजर्स के दिलो दिमाग पर इस कदर हावी रहता है कि दिन रात मेहनत करने के बावजूद उन्हें तसल्ली नहीं होती।कभी भी वे रिलेक्स्ड महसूस नहीं करते बल्कि गहरे मानसिक तनाव से घिरे रहते है । बारहवी की कक्षा तो जैसे तैसे निपट गई लेकिन इन परिक्षाओं के तुरंत बाद वे प्रवेष परीक्षाओं के जंजाल में फंस जाते हैं।जो पहले से भी अधिक जानलेवा साबित हेाती है।इतना ही नहीं आजकल अच्छे अंको से पास हेाने के साथ साथ मेडिकल ,इंजीनियरिंग,मैनेजमेंट आदि कोर्सो में प्रवेष पाना भी परिवार की सामाजिक हैसियत से जुड़ गया है।
किताबों में सिमटती दुनिया
मानसिक तनाव या दबाव बड़ने का एक और कारण है युवको का अपने आपका ेकिताबी दुनिया तक सीमित कर लेना।लगातार पढ़ते रहने से युवको के मानसिक व षारीरिक रूप से बुरी तरह थक जाते है।इस थकान की वजह से बाकि बचा हुआ समय वे सोने में बिता देते हैं।
किषोरों के लिए जरूरी है ये कुछ बातें-
-हमेषा अपना एक लक्ष्य तय करे,साथ ही क्षमता को देखकर ही लक्ष्य तय करे।वरना बाद में निराषा होगी।
-ध्यान रहे लगातार कई घंटो तक पढ़कर कोई युवा अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर सकता।किताबी कीड़ा बनने की आवष्यकता नहीं।
-मनोरंजन हमारे जीवन का जरूरी हिस्सा है।परीक्षा के दिनों मेें मनोरंजन का समय घटा दे। लेकिन थोड़ा समय निकाल कर हल्का फुल्का संगीत सुने इससे आप रिलेक्सड फिल करेगें।
-अगर माता पिता ने आपके सामने कठिन लक्ष्य रख दिया है। लेकिन आपको लगता है आप उसे हासिल नहीं कर पाएंगे तो उनसे स्पष्ट षब्दों में कहें कि आप कोषिष करेंगे लेकिन आपकी क्षमता से यह लक्ष्य बड़ा है।
-अगर आप किसी तनाव में हैं या फिर आपको किसी तरह की घबराहट या बेचैनी हो रही है तो तुरंत अपने परिवार वालोे या दोस्तो को बताए।
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