स्वस्थ षरीर सभी को अच्छा लगता है लेकिन यदि आपके षरीर में कोई ऐसी बिमारी हो जाए जिसका पता आपको उसके बढ़ने पर पता चले तो वह और भी घातक हो जाती है। इसी तरह टिटनेस जिसका सम्बंध चोट के लगने से है। है। चोट लगने के बाद संक्रमण पूरे षरीर में फैल जाता है। टिटनेस का इंजेक्षन नहीं लगवाया जाए तो इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं, हालांकि इस रोग के साथ अच्छी बात यह है कि यदि चोट लगने के बाद टीकाकरण हो जाए तो यह ठीक हो जाता है। आईए टिटनेस के कारण लक्षण और उपचार के बारे में-
टिटनेस क्या है
टिटनेस होने का असली कारण है ‘क्लोसट्रिडियम टेटानी’ नामक बैक्टीरिया से होता है। यह बैक्टीरिया धुल गन्दगी और जंग लगी चीजों में पाया जाता है। जब शरीर का घाव किसी कारण से इस बैक्टिरिया के संपर्क में आता है तो यह संक्रमण होता है। संक्रमण के बढ़ने पर, पहले जबड़े की पेशियों में ऐंठन आती है (इसे लॉक जॉ भी कहते हैं), इसके बाद निगलने में कठिनाई होने लगती है और फिर यह संक्रमण पूरे शरीर की पेशियों में जकड़न और ऐंठन पैदा कर देता है।इसलिए कहा जाता है कि जब भी आप कहीं गिर जाए, खरोंच आजाये या कोई लोहे की जंग लगी वस्तु से चोट लग जाए तो तुरंत टिटनेस का इंजेक्शन लगवा लेना चाहिए।
लक्षण
आमतौर पर रोग के लक्षण प्रकट होने में आठ दिन लगते हैं, लेकिन ये समय 3 दिनों से लेकर 3 सप्ताह तक का हो सकता है।
यदि आपको हल्का बुखार है तो आप टिटनेस के रोग से ग्रसित हो सकते है. यह बुखार बैक्टीरिया के कारण आता है।
शारीर में दर्द और मांसपेशियों में जकड़न भी इसका एक लक्षण है.
यदि आपको बार बार पैसाब जाना पड़ता है तो यह भी एक लक्षण है। मांसपेशियों के कमजोर होने की वजह से मरीज की पेशाब और मल को रोकने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है।
टिटनेस से इन्फेक्टेड मरीज की हड्डियाँ और मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। इस वजह से हड्डियों के फ्रैक्चर होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
यदि आप टिटनेस के रोग को इग्नोर कर इसका इलाज नहीं कराएँगे तो आपके जबड़े भी जाम होने लगेंगे।
टिटनेस से संक्रमित मरीजों को बहुत ज्यादा पसीना आता है।
दम घुटना टिटनेस की आखिरी स्टेज होती है जो आगे चलकर श्वसन प्रणाली को फेल कर देता
एकाएक, अनचाहे माँसपेशियों का सख्त हो जाना (माँसपेशियों का संकुचन)।
पूरे शरीर की मांसपेशियों में दर्द के साथ जकड़न।
निगलने में कठिनाई।
धक्के या झटके या टकटकी लगाकर देखना (झटके आना)।
उच्च रक्तचाप और ह्रदय गति तेज होना।
टिटनेस के कारण
टिटनेस के कई कारण और प्रकार होते हैं। जैसे-
स्थानीय टिटेनस
यह टिटेनस का इतना साधारण प्रकार नहीं है। इसमें रोगी को चोट (घाव) की जगह पर लगातार ऐंठन होती है। यह ऐंठन बंद होने में हफ्तों का समय ले लेती है। हालांकि टिटनेस का यह प्रकार मात्र 1 प्रतिशत रोगियों में ही घातक होता है।
कैफेलिक टिटेनस
कैफेलिक टिटेनस प्रायः ओटाइटिस मिडिया (कान के इन्फेक्शन का एक प्रकार) के साथ होता है। यह सिर पर लगने वाली किसी चोट के बाद होता है। इसमें खसतौर पर मुंह के भाग में मौजूद क्रेनियल नर्व प्रभावित होती है ।
सार्वदैहिक टिटेनस
सार्वदैहिक टिटेनस सबसे ज्यादा होने वाला टिटनेस है। टिटेनस के कुल मामलों में से 80 प्रतिशत रोगियों को सार्वदैहिक टिटेनस ही होता है। इसका असर सिर से शुरू होकर निचले शरीर में आ जाता है। इसका पहला लक्षण ट्रिसमस या जबड़े बन्द हो जाना (लॉक जॉ) होता है। अन्य लक्षणों के तौर पर मुंह की पेशियों में जकड़न होती है, जिसे रिसस सोर्डोनिकस कहते हैं। इसके बाद गर्दन में ऐंठन, निगलने में तकलीफ, छाती और पिंडलीयों की पेशियों में जकड़न होती है। इसके कुछ अन्य लक्षण में बुखार, पसीना, ब्लडप्रेशर बढ़ना और ऐंठन आने पर हृदय गति बढ़ना आदि शामिल हैं।
शिशुओं में टिटेनस
यह टिटेनस उन नवजातों में होता है जिन्हें गर्भ में रहते समय मां से पैसिव इम्युनिटी नहीं मिलती। या जब गर्भवती का टीकाकरण ठीक से नहीं होता। आमतौर पर यह नाभि का घाव ठीक से न सूखने के कारण होता है। नाभि काटने में स्टेराइल उपकरणों का उपयोग न करने के कारण नवजात शिशु में यह संक्रमण हो सकता है। यही कारण है कि लगभग 14 प्रतिशत नवजातों की मृत्यु टिटेनस हो जाती है। हालांकि विकसित देशों में यह आंकड़ा काफी कम है।
बचपन में टिटनेस का टीका नहीं लगवाया जाना
जिन लोगों को बचपन में टिटनेस का टीका नहीं लगाया जाता, उन्हें संक्रमण होने का खतरा काफी अधिक होता है। टिटेनस भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में होने वाली समस्या है। लेकिन नमी के वातावरण वली जगहों, जहां मिट्टी में खाद अधिक हो उनमें टिटनेस का जोखिम अधिक होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जिस मिट्टी में खाद डाली जाती है उसमें घोडे, भेड़, बकरी, कुत्ते, चूहे, सूअर आदि पशुओं के स्टूल उपयोग होता है। और इन पशुओं के आंतों में इस बैक्टीरिया बहुतायत में होते हैं। खेतों में काम करने वाले लोगों में भी ये बैक्टीरिया देखे गए हैं।
जरूरी है टिटनेस का टीका
टिटनेस का सीधा असर हमारे नर्वस सिस्टम पर पड़ता है. समय रहते ध्यान नहीं दिया जाए तो ये बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है. गर्भावस्था में संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में अगर मां को टिटनेस हो गया तो इसका सीधा असर बच्चे पर भी पड़ेगा. ऐसे में मां का सुरक्षित रहना बहुत जरूरी है।जब होने वाली मां वैक्सीनेशन लेती हैं तो उसका फायदा गर्भ में पल रहे बच्चे को भी होता है। जिससे बच्चा गर्भ में तो सुरक्षित रहता है ही साथ ही जन्म के कुछ समय बाद तक भी सुरक्षित रहता है।
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