‘‘क्या तुम्हे पता है अलिषा का एडमिषन दिल्ली के जाने माने स्कूल डी पी एस में हो गया है हमने भी बहुत कोषिष करी लेकिन इसका एडमिषन किसी पाॅपलर स्कूल में नहीं हो पाया देखना अब आरती किस तरह अलिषा को लेकर हम लोगों के बीच दिखावा करेगी।‘‘ षायद आपने भी ऐसे कई अभिभावको को स्कूल के जरिए अपनी षान दिखाते हुए महसूस किया होगा। अब अभिभावकों में घर,कार,कपड़े आदि के अलावा अपने बच्चों के स्कूलों को लेकर भी होड़ मची हुई है। उनके लिए अपने बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा ये मायने रखता है कि वह किस महंगे स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाते है उनके लिए समाज में उठने बैठने के लिए स्कूल भी स्टेटस सिंबल बनते जा रहे है। लेकिन स्टेटस के चक्कर में बच्चो का भविष्य अधर में लटक गया है। आईए जाने किस तरह स्कूलों की चकाचैंध अभिभावकों को अपनी ओर खिंच रही है-
भीड़ से अलग दिखने का एहसास
आज हमारा समाज भौतिकवाद के पश्चिमी संस्करण के अधीन हो चुका है. इसलिए लोगों की पहचान नैतिक मूल्यों या उन की शैक्षिक उपलब्धियों की अपेक्षा उन के पास उपलब्ध चीजों से होती है। यदि हम स्कूल की बात करें तो आज दिन प्रतिदिन नए और महंगे स्कूल खुलते जा रहे है जो किसी 5 सितारा होटल से कम नजर नहीं आते। यदि आप इन स्कूलों में प्रवेष करते है तो आपको महसूस होता है कि वहां जमीन पर चमकते पत्थर से लेकर दिवारांे पर सजी तस्वीरे आपको आकर्षित करती हैे साथ ही वहां की अघ्यापिकाएं भी पूरा मेकअप करे आकर्षित कपड़ों पहने नजर आती है षालीनता का तो जैसे नामो निषान नहीं होता है। और हां पढ़ाई तो नाम मात्र होती है लेकिन बच्चे को पूरी सुविधाएं दी जाती है। बच्चा भी खुष और आप भी खुष। साथ ही अभिभावहक इन स्कूलों में एडमिषन करवाकर बड़ा गर्व महसूस करते है।
एक्टिीवी पर जोर
इन स्कूलों में यदि पढ़ाई की बात की जाए तो उनका कहना होता है कि हम बच्चे पर पढ़ाई का बोझ नहीं डालना चाहते इसलिए हम ज्यादा से ज्यादा बच्चों को एक्टीविटी करवाते है। पढ़ाई के अलावा इनमे घुड़सवारी,नृत्य,खेल कूद आदि चीजों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। इन महंगे स्कूलों में एक बच्चे का खर्च हर महिने में 10 से 15 हजार के आस पास आना तो स्वाभाविक है साथ ही एक्टीविटिज के लिए भी अभिभावको की जेब ढीली करते नजर आते है। लेकिन यदि बच्चे का पढ़ाई का बेस ही मजबूत नहीं होगा तो उनके आने वाले भविष्य कैसा रहेगा। लेकिन अभिभावको को लगता है कि हम बच्चे पर पढ़ाई का ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहते साथ ही हम पैसा भी तो उनके लिए कमा रहे तो बच्चे को बड़े से बड़े स्कूल में डालना स्वाभाविक है।
पढ़ाई का स्तर
लेकिन कभी आपने सोचा है कि इसका असर बच्चों पर किया होता है। क्या वे अपने पैरो पर भली प्रकार से खड़े हो पाएंगे। ममता और रूचि दोनो ही अच्छी सहेली है दोनो के बच्चे चैथी कक्षा में पढ़ते है दोनो कि आपसी बातचीत से पता चला ममता का बेटा एक साधारण से काॅन्वेंट स्कूल में पढ़ता है जबकि अर्पणा का बेटा इंटरनेषनल स्कूल में पढ़ता है जिसके महिने का खर्च काॅन्वंेट में पढ़ने वाले बच्चे से कई गुना ज्यादा है लेकिन बच्चों की जब पढ़ाई की बात सामने आई तो काॅन्वेंट में पढ़ने वाला बच्चे का स्तर इतना उंचा है कि इंटरनेषनल में पढ़ने वाला बच्चा उसका कोई मुकाबला ही नहीं कर सकता। यहां ये पता चलता है कि जरूरी नहीं कि एक नामी गरामी स्कूल में पढ़वाकर ही आपके स्टेटस का पता चलेगा जबकि आपके बच्चे का पढ़ाई का स्तर इतना नीेचे है कि वह किसी प्रतियोगिता मेे या किसी और बच्चों में सबसे पिछे होगा। यदि पढ़ाई का स्तर अच्छा है तो बच्चे के व्यक्तित्व से आपकी पहचान बन जाएगी।
बच्चों पर इसका प्रभाव
‘‘मेरे स्कूल की ड्ेस तो रीबाॅक की है और जूते एडिडास के पहन कर तो मजा आ जाता है। मेरे पापा ने तो फोर्चूना गाड़ी ली है और मेरे मम्मा ने तो मुझे राॅडो की घड़ी दिलाई है। ‘‘कुछ इसी तरह इन महंगे स्कूलों में पढ़ने वाले छोटी कक्षा के बच्चे एक दूसरे के लंच बाक्स,पेंसिल बाक्स,कलर्स आदि में बहस करने लगते है। अपने मां बाप से वे उम्मीद करने लगते है कि हमें भी वैसे ही सब चीजे चाहिए जो उसके दोस्तों के पास है। धीरे धीरे करके बड़े होते होते उन्हे बड़ी बड़ी गाड़ियां,होटलों में पार्टियां आदि की लत लग जाती है तब मां बाप के बस में कुछ नहीं रह जाता हैं क्योंकि उनके बच्चों कोे षुरू से ही ऐसे स्कूलों में भेजा जाता है जहां स्कूल हो या कैब सभी में फुल एसी लगा होता है। उनका पढ़ाई से हटकर बाकि चीजों में दिमाग कार्य करने लगता है जहां बच्चे का विकास भली प्रकार से नहीं हो पाता।
लेकिन यहां ये भी जानना आवष्यक है कि यदि उच्च वर्गीय परिवार के लिए स्कूल स्टेटस बन रहे है तो मध्यवर्गीय परिवार जो न तो ज्यादा पैसा खर्च कर सकते है लेकिन क्या करे सरकारी स्कूलों में भी नहीं पढ़ा सकते है आईए इस पर भी एक चर्चा कर ले-
हमारे देष की विडम्बना
हमारे देश के करोड़ों बच्चे हर सुबह अपना बस्ता लेकर स्कूल जाते हैं। हर माता-पिता की तमन्ना रहती है कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर खूब बड़ा बने और दुनिया में खूब नाम रोशन करे। इन स्वप्नों को पूरा करने में स्कूल और हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन विडंबना है कि लोगों के जीवन को गढ़ने वाली यह पाठशाला आजकल एक ऐसे भयावह काले वातावरण से घिरती जा रही है जिससे निकलना फिलहाल तो काफी मुश्किल नजर आ रहा है। यह काला स्याह वातावरण व्यावसायिकता का है। वो व्यवसायिकता, जिसने अच्छी शिक्षा को सिर्फ रईस लोगों की बपौती बनाकर रख दिया है क्योंकि कुछ पुराने स्कूल है जिनकी पढ़ाई का स्तर भी बेहद उंचा है साथ ही उन स्कूलों में पढ़कर बच्चा कुछ बनकर ही निकलता है लेकिन उनकी फीस भी आज इतनी अधिक हो गई है कि मध्यवर्गीय या निम्नवर्ग के लोग उन्हे झेल नहीं सकते। उसके बाद स्कूल के और भी खर्चे।
‘‘अर्पणा जिनकीबेटी सलवान पब्लिक स्कूल में पढ़ती है जहां पढ़ाई का स्तर काफी बेहतर है लेकिन फीस इतनी अधिक है कि वे फीस देने में स़क्षम नहीं हो पा रहे। उन्होंने बताया कि स्कूल के इतने जबरदस्त खर्चे की षायद हमें इस स्कूल से निकालना पड़ सकता है। ‘‘
दाखिला बेहद मुष्किल
बच्चों का एडमिषन किसी अच्छे स्कूल में करवाना भी बेहद मुष्किल हो गया है यदि आपका मन है कि फलां स्कूल की पढ़ाई अच्छी है तो जरूरी नहीं आपके बच्चे को उसी स्कूल में दाखिला मिल जाए क्योकि कुछ ऐसे स्कूल जिनकी पढ़ाई का स्तर भी सही है साथ ही फीस भी ज्यादा नहीं है लेकिन उनकी संख्या बेहद कम है और बच्चों की संख्या ज्यादा। तो लाचमी है कि आप अपने बच्चे को मनचाहे स्कल में दाखिला नही करवा पाते है।
सरकारी स्कूल
यदि आज सरकारी स्कूल की बात की जाए तो बाहर के देषो को देखते हुए हमारे सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खस्ता है कि इनमेे कोई पढ़ाना ही नहीं चाहता। यदि आप बाहर के देषों की बात करे तो वहां सरकारी स्कूलों में हर तरह से बच्चों की षिक्षा को देखते हुए सुविधाएं दी जाती है साथ ही बच्चों में क्या सुधार लाएं जाए उन पर ध्यान दिया जाता है। जिससे अभिभावहक सरकारी स्कूलों में ही बच्चों का दाखिला करवाना चाहते है। लेकिन यहां सिर्फ षिक्षकों को तो अच्छी तनख्वाह दी जाती है लेकिन पढ़ाई का स्तर डांवाडोल है जिसको देखते हुए हर कोई अभिभावहक चाहता है उनका बच्चा प्राइवेट स्कूलों में पढ़े।